शोध में होनी चाहिए मौलिकता : प्रोफेसर अजय शुक्ला
गोरखपुर । शोध कार्य मौलिक होना चाहिए। इसमें पूरी तौर पर अकादमिक निष्ठा होनी चाहिए साथ ही साथ यह साहित्यिक चोरी से मुक्त होना चाहिए। किसी भी शोध में नैतिकता और सत्य के प्रति निष्ठा आवश्यक तत्व है।अकादमिक सत्यनिष्ठा एवं साहित्यिक चोरी की रोकथाम के लिए बनाए गए कानून को प्रत्येक शोधार्थी एवं शिक्षक को समझना चाहिए।
उक्त वक्तव्य यूजीसी एचआरडीसी एवं समाजशास्त्र विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किए जा रहे चौदह दिवसीय पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के एक सत्र को बतौर वक्ता संबोधित करते हुए अंग्रेजी विभाग के वरिष्ठ आचार्य में प्रो. अजय शुक्ला ने ‘रीसर्च मेथॉडॉलॉजी एंड एथिक्स’ विषय के अतर्गत दिया।अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा साहित्यिक चोरी के चार स्तर दिखाए गए हैं जिसमें जीरो स्तर पर कोई दंड नहीं है लेकिन एक दो और तीन पर दंड का प्रावधान है। यदि आपके कार्य में 10% से ऊपर समानता पाई जाती है तो वह साहित्यिक चोरी के दायरे में आता है। अपने उद्बोधन में उन्होंने साहित्यिक चोरी के विभिन्न प्रकारों की चर्चा की साथ ही साथ शोध में नैतिकता पर प्रकाश डाला। इसके साथ ही उन्होंने अपने शोध प्रबंध एवं शोध पत्र को जांचने के लिए उरकुंड जैसे सॉफ्टवेयर की प्रयोग कर प्रस्तुति भी दिया।कार्यक्रम की संयोजक एवं अध्यक्ष प्रो. संगीता पांडेय ने स्वागत करते हुए कहा शोध में नैतिकता का समावेश आवश्यक होता है और सभी शिक्षकों को इसके नियम जानना अनिवार्य है। इसीलिए आज शोध प्रविधि एवं नैतिकता विषय पर व्याख्यान आयोजित कराया गया है।
एचआरडीसी के निदेशक प्रो. रजनीकांत पाण्डेय ने कार्यक्रम का ऑनलाइन अवलोकन किया। अंत में आभार ज्ञापन करते हुए सह समन्वयक डॉ. मनीष पाण्डेय ने कहा कि शोध और जीवन दोनों के ही नैतिक होने की अपेक्षा समाज करता है। व्याख्यान के दौरान देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों से प्रतिभाग कर रहे सभी शिक्षक उपस्थित रहे।